सवाल, पक्षियों की आखिर अहमियत क्या है?

Feb 29, 2020
Article

SHARE

चेतावनी… हाल ही में जारी स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स 2020 रिपोर्ट का डेटा बेहद चौंकाने वाला है

बसंत का मौसम है। मौसम पंछियों वाला। देश में भले आप कहीं भी रहते हों, घने जंगल से लेकर बियाबान रेगिस्तान या फिर गली-मोहल्लों वाले किसी शहर में। संभावना है कि सुबह आपकी नींद पक्षियों के चहचहाने से खुलती होगी। फिर भले वह कौआ हो या कोयल, पक्षी देश में हर जगह मिल जाएंगे। दुनियाभर में गिने-चुने मुल्क हैं जहां हमारे देश जैसी मुख्तलिफ पक्षियों की आबादी है। बर्ड वॉचर अब तक 867 प्रजातियां देखने की बात दर्ज कर चुके हैं। जिनमें स्थानीय भी हैं और प्रवासी भी।

सच तो ये है कि दशकों तक हमारे उपमहाद्वीप ने साइबेरिया जैसी मीलों दूर जगहों से आए प्रवासी पक्षियों का स्वागत किया है। हम्पी के पास लकुंड़ी गांव में हजारों साल पुराने चालुक्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर प्रवासी पक्षियों की आकृतियां उकेरी हुई हंै। जिसमें हंस, सारस और फ्लेमिंगो तक शामिल हैं।
देखा जाए तो हमारी संस्कृति में पक्षी बेहद लोकप्रिय हैं। हमें यह याद दिलाने तक की जरूरत नहीं कि देवी देवताओं के वाहन कौन से पक्षी हैं या फिर हमारे राजघरानों के प्रतीकों में किन पक्षियों के चिह्न थे। संगीत हो या फिर कला हर एक में पक्षी मौजूद हैं। हर बच्चे को पंछियों की कहानियां याद हैं, चतुर कौए की कहानी तो याद ही होगी, हिंदुस्तान की कई कहानियों में पक्षी हैं। हमारे पास 3000 साल पहले यजुर्वेद में दर्ज एशियाई कोयल की परजीवी आदतों का डेटा है। पक्षी हमारे पक्के साथी हैं, शारीरिक तौर पर भी और सांस्कृतिक रूप में भी।

हालांकि हाल ही में जारी हुए स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स 2020 रिपोर्ट का डेटा बेहद चौंकाने वाला है। यह देश में पक्षियों के बहुतायत में होने के चलन, संरक्षण स्थिति का अपनी तरह का पहला विस्तृत आकलन है। भारत में पक्षियों के डेटा को इक्ट्‌ठा करने एनसीएफ, एनसीबीएस और ए ट्री जैसे दसियों संगठन साथ आए हैं। उन्होंने 15,500 आम लोगों के 1 करोड़ ऑब्जरवेशन पर बहुत भरोसा जताया है। जिन्होंने आसानी से इस्तेमाल होने वाले ‘ई बर्ड’ प्लेटफॉर्म पर अपना डेटा रिकॉर्ड किया हैै। डेटा के मुताबिक 867 प्रजातियों में से 101 को संरक्षण की बेहद ज्यादा, 319 को सामान्य और 442 को कम जरूरत है। 261 प्रजातियों के लिए लंबे वक्त के ट्रेंड समझे गए जिसमें से 52 प्रतिशत जो कि आधे से ज्यादा हैं, उनकी संख्या साल 2000 के बाद से घटी है।
जबकि इनमें से 22 प्रतिशत की संख्या काफी ज्यादा घटी है। 146 प्रजातियों के लिए सालाना ट्रेंड पढ़े गए और उनमें से 80 प्रतिशत की संख्या घट रही है और 50 प्रतिशत की संख्या खतरनाक स्तर पर है। इस स्थिति पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

इस रिपोर्ट के आने से पहले तक हमें अपने पक्षियों के जीवन का भाग्य नहीं पता था। हम चुनिंदा प्रजातियों के बारे में जानते थे, जैसे मोर, जो कि देश का खूबसूरत राष्ट्रीय पक्षी है। जिसकी स्थिति काफी अच्छी है और संख्या ठीक-ठाक बढ़ रही है। और गौरेया जिसके बारे में पर्यावरणविदों को लगा था कि वह खत्म हो रही है। बस इसलिए क्योंकि शहरी इलाकों में उनकी मौजूदगी कम हो रही थी, जबकि असल में उनकी संख्या स्थिर है। इस रिपोर्ट की बदौलत अब मालूम हुआ कि प्रवासी पक्षी जैसे कि गोल्डन प्लोवर, शिकार पक्षी जैसे कि गिद्ध और हैबिटेट स्पेशलिस्ट जैसे कि फॉरेस्ट वैगटेल काफी खतरे में हैं। पर इनकी चिंता हम क्यों करें? इन पक्षियों की आखिर अहमियत ही क्या है?

पक्षी हमारे इकोसिस्टम में अहम भूमिका रखते हैं। वह दूसरी प्रजातियों के लिए परागणकारी हैं, बीज फैलाने वाले, मैला ढोने वाले और दूसरे जीवों के लिए भोजन भी हैं। पक्षी स्थानीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकते हैं, क्योंकि कई लोग उन्हें देखना पसंद करते हैं। देश में बर्ड वॉचर्स की बढ़ती संख्या ने इकोटूरिज्म को बढ़ावा दिया है।

सच तो यह है कि मानव स्वास्थ्य पक्षियों की भलाई से काफी नजदीक से जुड़ा है। और उनकी संख्या घटना खतरे की चेतावनी है। अंग्रेजी का एक रूपक है, ‘केनारी इन द कोल माइन’। यानी कोयले की खदान में केनारी चिड़िया। पुराने जमाने में खदान में जाते वक्त मजदूर पिंजरे में केनारी चिड़िया साथ ले जाते थे। यदि खदान में मीथेन या कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर ज्यादा होता था तो इंसानों के लिए वह गैस खतरनाक स्तर पर पहुंचे इससे पहले ही केनारी चिड़िया मर जाती थी। और मजदूर खदान से सुरक्षित बाहर निकल आते थे। स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स रिपोर्ट 2020 इस केनारी चिड़िया की तरह ही हमें आगाह कर सकती है। अपने पक्षियों को बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? जरूरत है हम देखें, समझें और उनकी रक्षा करें। मैं कई दशकों से पक्षी प्रेमी हूं, पक्षी मुझे बेइंतहा खुशी देते हैं। एक तरीके से उनका कर्ज चुकाने को मैं अपने बगीचे का एक हिस्सा अनछुआ रहने देती हूं ताकि पक्षी वहां आकर अपना घोंसला बना सकें। हमारे आसपास मुनिया, बुलबल और सनबर्ड के कई परिवार फल-फूल रहे होते हैं। मेरी कोशिश होती है कि फल और फूलों वाले कई पौधे लगाऊं। मैं बगीचे के अलग-अलग कोनों में पक्षियों के लिए पानी रखती हूं। अलग-अलग ऊंचाई पर ताकि छोटे-बड़े हर तरह के पक्षी उसे पी सकें। भारत में कई समुदाय पक्षियों के संरक्षण के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। कई बार अपनी आजीविका की कीमत पर भी। कर्नाटक के कोकरेबैल्लूर में गांववालों और दो तरह के पक्षियों की प्रजातियों स्पॉट बिल्ड पेलिकन और पेंटेड स्टॉर्क के बीच एक खास संबंध है। नगालैंड के पांगती में गांववालों ने पिछले दिनों अमूर फालकन को न मारने की कसम खाई है। ये पक्षी बड़ी संख्या में उस इलाके से गुजरते हैं।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पहल करते हए राजस्थान की सरकार को लुप्तप्राय सारंग पक्षी को बचाने का निर्देश दिया हैै। सारंग वह पक्षी है जो मोर चुनते वक्त हमारा राष्ट्रीय पक्षी बनने की दौड़ में था। ऐसे उदाहरण हर जगह हैं, जैसे पक्षी हर तरफ हैं। पक्षी हमारी आंखों को खूबसूरती से भर देते हैं और कानों को चहचहाहट से। वह हमारे दिलों को शांति और सुकून देते हैं। अब बतौर समाज हमें सोचना होगा कि भारत की पक्षियों की अद्भुत विविधता को स्वस्थ रखने के लिए कर क्या सकते हैं। उनके लिए भी और खुद के लिए भी।

KEYWORDS

YOU MAY ALSO WANT TO READ

Jan 24, 2023
Podcast
The ‘Conversation of Change’ series is a video interview series centered around one of the most pertinent crises of our times- Climate change. This is an attempt to synthesize perspectives [...]
Oct 11, 2022
Article
The recent Bengaluru floods washed up the dirty linen of mismanagement and corruption on the shores of a crumbling city infrastructure. Yet, no matter how quickly various governments build out [...]
Aug 19, 2022
Panel
This is an edited version of a panel discussion moderated by Rohini Nilekani, hosted by ATREE Bangalore. The panellists included Veena Srinivasan, K Vijayraghavan, Sameer Shisodia and Harini Nagendra, who [...]