महिलाओं के साथ पुरुषों को भी सशक्त करना होगा

Mar 30, 2019
Article

SHARE

समाज… क्या हम रचनात्मक रूप से युवा पुरुषों के सशक्तीकरण की चुनौती का भी सामना कर सकते हैं?

मशहूर टीवी सीरियल की तरह हम लड़कियों को यह उम्मीद देने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं।’ इसके परिणाम भी सकारात्मक आ रहे हैं। आज ज्यादातर लड़कियां स्कूल जाती हैं। उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियां मिल रही हैं। उनके पास नए कौशल और नौकरी के अवसर हैं। महिला अधिकारों की रक्षा के लिए कई नए कानून बने हैं। फिर भी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है। हर दिन हम महिलाओं के खिलाफ नए अपराधों के बारे में सुनते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि मानों चीजें पहले से भी ज्यादा खराब हो रही हैं, खासकर जब हम हिंसा के नए रूपों को देखते हैं।

क्या हम यहां कुछ मिस कर रहे हैं? शायद महिलाओं को सशक्त करते हुए हम समस्या के आधे हिस्से को अनदेखा कर रहे हैं। क्या इसलिए समाधान भी आधा ही मिल पाता है? अगर हम सर्वे भवन्तु सुखिनः के आधार पर चलें तो शायद हमें इस देश के 20 करोड़ से ज्यादा नौजवानों को स्पॉटलाइट में लाना होगा। कुछ घटनाएं बताती हूं, जो मेरे दिमाग में घर कर गईं। कर्नाटक के रामानगर में मैं 15 साल के एक लड़के से मिली थी। वह बहुत रो रहा था और उसकी छोटी बहन उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप करने वाला यह लड़का आगे की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन राज्य परिवहन निगम में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी इसलिए उसके पिता ने कहा कि वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सकता। दूसरा किस्सा है जब एक बार हाइवे पर गुस्साए युवकों की भीड़ ने हमारी कार रोक दी थी। हाथ में लाठियां लिए ये एक एक्सीडेंट के विरोध में ट्रैफिक जाम कर रहे थे। इनमें से सबसे छोटा लड़का मुश्किल से दस साल का रहा होगा। उनके चेहरे पर आक्रामकता से भरी उत्तेजना थी। और तीसरी बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह हाल ही का है, जब मैंने कई युवाओं को सिक्योरिटी गार्ड, सेल्स और सर्विस एजेंट की नौकरी पाने के लिए लाइन में खड़े हुए देखा है। ऐसी नौकरियों से केवल इतनी मजदूरी मिलती है, जिससे बस किसी तरह गुजर-बसर हो सके। उनकी आंखें आशा और निराशा दोनों से भरी थीं। मेरे लिए यह सभी घटनाएं गैलरी में रखे स्नैपशॉट की तरह हैं जो उस सच्चाई के बारे में बताता हैं, जिसका सामना 13 से 25 वर्ष की उम्र के बीच के कई लड़के और युवक कर रहे हैं।

मुझे नहीं लगता कि ऐसे नौजवान आत्मविश्वास से कह सकते हैं ‘मैं कुछ भी कर सकता हूं’। हम पुरुषों पर अपने बहुत सारे विचार थोप देते हैं, जैसे कि उन्हें मजबूत होना होगा, कमाने वाला बनना होगा और किसी भी हाल में सफल होना होगा। उन्हें परिवार की रक्षा करनी होगी और उसके लिए सम्मान अर्जित करना होगा। उन्हें महिलाओं के अधिकारों को बनाए रखना होगा और अपने कुछ पुराने अधिकारों को छोड़ना होगा। लाखों युवा इन उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सकते, क्योंकि इनमें से बहुत से युवा अशिक्षित और बेरोजगार हैं। नई अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक नए कौशल उनके पास नहीं हैं। उनकी आकांक्षाएं जरूर बढ़ रही हैं लेकिन, उन सपनों को साकार करने का रास्ता उन्हें नहीं मिल पा रहा है। कई बार ऐसा भी होता है कि उनकी बहनें, पत्नी या फिर गर्लफ्रेंड आगे बढ़ जाती हैं। ऐसा लगता है कि पूरा देश महिलाओं को सुशिक्षित करने और कमाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है और इसके लिए नए अवसर भी पैदा कर रहा है। इससे कई नौजवान चिंतित और बेहद असुरक्षित हैं। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके भविष्य पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। फिर भी वो रो नहीं सकते। उन्हें घर पर भी कोई नहीं समझता। अपने साथियों के साथ उन्हें अपनी मर्दाना छवि को मजबूत बताना है और सब कुछ ठीक होने का दिखावा करना है। फिर क्या होगा? मुझे लगता है कि इसका जवाब हमारे दिलों में है। ये युवा या तो अपनी बेचैनी को दबाए रखेंगे या फिर आक्रामक रूप से प्रकट होंगे। दोनों ही बातों से युवा और समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

बिना किसी डेटा या रिसर्च के ऐसा कहना मुश्किल है लेकिन, अगर हम एक अच्छा समाज और समृद्ध देश चाहते हैं, तो हमें इन 20 करोड़ नागरिकों की जरूरतों पर ध्यान देना होगा। उन्हें भी सुने जाने का, देखभाल का, शिक्षित और सशक्त होने का पूरा हक है। लड़कों के पास खुद को व्यक्त करने का विकल्प होना चाहिए, जैसे कि हम लड़कियों के लिए भी चाहते हैं। जैसे हम महिला सशक्तिकरण के लिए लगातार काम कर रहे हैं वैसे ही क्या हम रचनात्मक रूप से युवा पुरुषों के सशक्तीकरण की चुनौती का भी सामना कर सकते हैं? क्या नागरिक समाज संगठन एक ऐसा सुरक्षित मॉडल बना सकते हैं, जहां लड़के बिना हिचकिचाए एक-दूसरे से बात कर सकें, अपनी परेशानी साझा कर सकें? क्या हम लड़कों को कला या खेल सीखने या फिर बर्ड वॉचिंग के लिए समय दे सकते हैं? हमें पुरुषों के लिए यह सब करना होगा अगर हम सच में महिलाओं को सशक्त करना चाहते हैं, क्योंकि जब सशक्त महिलाएं असशक्त स्थितियों में वापस जाती हैं तो उनका सामना एक पिछड़ेपन से होता है। जहां उनकी नई आज़ादी को सक्रिय रूप से चुनौती दी जाती है। ऐसी स्थिति में या तो उन्हें विद्रोह करना होगा या फिर चुपचाप इसमें ही रहना होगा। इसमें से जो भी वे चुनेंगी वह बुरा ही होगा। सशक्त महिला को सशक्त पुरुष की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि स्वस्थ, शिक्षित, कमाने वाली महिलाओं के लिए एक सपोर्टिव पार्टनर हो जो एक स्वस्थ, और खुश पुरुष हो। हमें एक साथ महिलाओं और पुरुषों के साथ काम करने की आवश्यकता है। इस तरह के बदलाव समाज में धीरे-धीरे होते हैं लेकिन, एक ऐसे देश में जहां 50% से ज्यादा युवा रहते हैं, हमें चीजों को गति देने की जरूरत है। क्या हम सब इसमें सहभागी बन सकते हैं? मुझे यकीन है कि इसकी शुरुआत होगी घरों से। सिर्फ मां नहीं, पिता को भी अपने बेटे से बात करने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वो खुद को अकेला महसूस न करें। शायद हम पहली बार असफल हों, लेकिन, समय के साथ सब बदलने लगेगा। एक साथ, एक संवेदनापूर्ण समाज बनाएं, जहां युवा पुरुषों और महिलाओं को न तो खतरा महसूस होता है, न ही एक दूसरे को धमकी देने की जरूरत या इच्छा हो। तब जाकर शायद यह कह पाएंगे कि ‘हम कुछ भी कर सकते हैं’।

KEYWORDS

YOU MAY ALSO WANT TO READ

Dec 05, 2022
Report
Beneath the apparent privileges that boys enjoy, there is immense pressure to perform. The societal expectations are set for them, irrespective of economic background. Men are an equal half of [...]
Sep 22, 2022
Keynote
Namaste, everyone. And wow, it has been an exhilarating one and a half days. Of presentations, conversations, the igniting of ideas , the sharing of experiences and the airing of [...]
Mar 02, 2022
Others
In order to further engage with people on the topic of building a gender-equitable society, Rohini Nilekani Philanthropies (RNP) has released this new video. The video showcases why it is [...]